केदारनाथ में इस शीतकाल में सबसे कम बर्फबारी हुई है। इस बार धाम में अभी करीब चार फीट ही बर्फ जमी है जबकि गत वर्ष इस दौरान करीब छह फीट बर्फ होती थी। बीते वर्ष पूरे यात्राकाल में मई, सितंबर और अक्तूबर में धाम में बर्फबारी हुई थी। इसके बाद यहां 17 नवंबर से दिसंबर आखिर तक बर्फबारी नहीं हुई।

इस वर्ष जनवरी के शुरूआती 15 दिन केदारनाथ में कुल पांच फीट बर्फबारी हुई है। इसके बाद 30 जनवरी को भी हल्की बर्फ ही गिरी। केदारनाथ पुनर्निर्माण में जुटे मनोज सेमवाल ने बताया कि आपदा के बाद से धाम में इस शीतकाल में सबसे कम बर्फबारी हुई है।

2016 में धाम में पूरे सीजन में 40 फीट तक बर्फ गिरी थी जबकि 2018 में पूरे सीजन में रिकार्ड 64 फीट बर्फ गिरी। तब फरवरी-मार्च तक यहां सात से आठ फीट से अधिक बर्फ जमी थी। 2019 में अच्छी बर्फबारी हुई जिससे पूरे यात्राकाल में भी पैदल मार्ग पर दो हिमखंड मौजूद रहे।

वाडिया संस्थान से सेवानिवृत्त ग्लेशियर विज्ञानी डाॅ. डीपी डोभाल का कहना है कि हिमालय रेंज में लगभग दस हजार छोटे-बड़े ग्लेशियर हैं जिन पर मौसम चक्र में बदलाव का सीधा असर पड़ रहा है।

बीते वर्ष नवंबर मध्य के बाद दिसंबर के आखिर तक एक भी दिन बारिश, बर्फबारी नहीं हुई जबकि दिसंबर में ग्लेशियरों में बर्फ की मोटी परत जमना जरूरी है। जनवरी-फरवरी में ऊपरी क्षेत्रों में होने वाली बर्फबारी ग्लेशियरों को आकार देने में सक्षम नहीं होती।

केदारनाथ से चार किमी ऊपर चोराबाड़ी ताल है जिसे मंदाकिनी नदी निकलती है। इस ग्लेशियर का क्षेत्रफल लगभग 14 किमी है जबकि इसी ग्लेशियर से लगा कंपेनियन ग्लेशियर है जो सात किमी क्षेत्र में है। बीते वर्ष सितंबर-अक्तूबर में इन्हीं दोनों ग्लेशियरों में हिमखंड टूटने की तीन घटनाएं हुईं थीं।

बीते वर्ष अक्तूबर से इस वर्ष फरवरी तक हिमालय क्षेत्र में भी पर्याप्त बर्फ नहीं गिरी जो पर्यावरण के लिए शुभ नहीं है। केदारनाथ में जो बर्फ जमा है वह तेज धूप में एक सप्ताह में ही पिघल जाएगी। ऐसे में यहां आगामी मार्च से चारों तरफ पहाड़ियां तपनी शुरू हो जाएगी जिससे ग्लेशियर की बर्फ तेजी से पिघलेगी। ऐसे में नदियों का जलस्तर बढ़ने से खतरा पैदा हो सकता है। – जगत सिंह जंगली, पर्यावरणविद्, रुद्रप्रयाग

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