हल्द्वानी। मंडी में आलू की खूब बिक्री हो रही है, मगर मैदानी क्षेत्र के कोल्ड स्टोरेज से आ रहे आलू ने पर्वतीय क्षेत्र के जैविक आलू की मिठास कम कर दी है। मैदानी क्षेत्र से आ रहा आलू पर्वतीय आलू की अपेक्षा सस्ता है, जिस कारण इसकी डिमांड ज्यादा है। ऐसे में पर्वतीय आलू की मांग घट गई है और इससे किसानों को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है।

आलू फल आढ़ती एसोसिएशन अध्यक्ष कैलाश जोशी ने बताया कि वर्तमान में कहीं भी आलू का उत्पादन नहीं हो रहा है। कोल्ड स्टोरेज में रखा आलू ही मंडियों में आ रहा है, जबकि पर्वतीय क्षेत्र का आलू कोल्ड स्टोरेज में नहीं रखा जाता। वह पूर्ण रूप से जैविक तरीके से उगाया जाता है। इस कारण इसकी कीमत मैदानी आलू की अपेक्षा अधिक होती है। यह खाने में अधिक स्वादिष्ट भी होता है। मंडी सचिव दिग्विजय सिंह देव ने बताया कि बीते एक सप्ताह में पर्वतीय क्षेत्र का 1324 क्विंटल आलू मंडी में आया। वहीं मैदानी क्षेत्र का 3617 क्विंटल आलू मंडी में आया।

यहां भी चल रही मुनाफाखोरी
मैदानी और पहाड़ी आलू दोनों के रेट में दोगुने का फर्क है। मंडी में मैदानी आलू 11 से 15 रुपये किलो तो पर्वतीय आलू 22 से 25 रुपये किलो तक बिक रहा है, मगर खुले बाजार में दोनों ही आलू 25 से 30 रुपये किलो के भाव बिक रहा है। दुकानदार मैदानी आलू को भी पर्वतीय बताकर बेच रहे हैं।

ग्रेडिंग कर दिल्ली मंडी में भेजा जा रहा आलू
एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष जीवन सिंह कार्की ने बताया कि पर्वतीय क्षेत्र का आलू स्थानीय मंडियों के अलावा दिल्ली, उत्तर प्रदेश की मंडियों में भेजा जाता है। आलू की ग्रेडिंग की जाती है। प्रतिदिन पांच से सात सौ क्विंटल आलू बाहर भेजा जा रहा है।

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