देहरादून: इसे सरकारी प्रयासों का प्रतिफल कहें या माटी से जुड़ाव का परिणाम अथवा बढ़ते शहरीकरण का असर, कारण चाहे जो भी हों, लेकिन उत्तराखंड के गांवों से पलायन को लेकर स्थिति सुधरने के सुखद संकेत मिलने लगे हैं।
पलायन निवारण आयोग का सर्वे तो इसी तरफ इशारा कर रहा है। यह बात निकलकर आ रही कि गांव की चौखट से निकले कदम राज्य के शहरी क्षेत्रों में ही थमने लगे हैं। अन्य प्रदेशों के लिए पलायन की रफ्तार मंद पड़ी है।
राज्य के आंगन में ही सिमटते दिख रहे पलायन से ग्रामीण परिवारों की आय के स्रोत भी बढऩे लगे हैं। यद्यपि, आयोग अभी सर्वे के आंकड़ों के विश्लेषण में जुटा है और रिपोर्ट तैयार होने के बाद ही पलायन को लेकर सही स्थिति सामने आएगी।
राज्य गठन के 22 वर्ष बाद भी चुनौती बना है पलायन
उत्तराखंड के गांवों से पलायन ऐसा विषय है, जो राज्य गठन के 22 वर्ष बाद भी चुनौती बना है। नौ नवंबर 2000 को उत्तराखंड के अस्तित्व में आने के 17 साल बाद सरकार ने पलायन की भयावहता को महसूस किया। नतीजा, ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग (अब पलायन निवारण आयोग) का गठन किया।
आयोग ने वर्ष 2018 में राज्य के सभी गांवों का सर्वे कर पलायन की स्थिति और कारणों को लेकर रिपोर्ट सरकार को सौंपी।
तब ये बात सामने आई कि 3946 गांवों के 1.18 लाख व्यक्तियों ने स्थायी और 6338 गांवों के 3.83 लाख ने अस्थायी रूप से पलायन किया। इसके साथ ही राज्य में पूरी तरह जनविहीन हो चुके गांवों की संख्या भी 1702 पहुंच गई है। रिपोर्ट मिलने के बाद आयोग के सुझावों पर अमल करते हुए सरकार ने कई कदम भी उठाए।
बीते पांच वर्षों के भीतर पलायन की गति थमी या बढ़ी, सरकारी अथवा निजी प्रयासों के क्या असर रहे, रिवर्स पलायन को लेकर तस्वीर क्या है, गांवों में मूलभूत सुविधाओं व स्वरोजगार स्थिति क्या है, ग्रामीण आर्थिकी में कितना सुधार हुआ, ऐसे तमाम बिंदुओं पर आयोग ने हाल में सर्वे पूर्ण किया।
प्रदेश से बाहर जाने वालों की संख्या में कमी आई
सूत्रों के अनुसार सर्वे के आंकड़ों के विश्लेषण में जो तस्वीर दिख रही है, वह सुकून देने वाली है। गांवों के निवासियों ने अन्य प्रदेशों की दौड़ लगाने के स्थान पर राज्य के शहरी क्षेत्रों में रोजगार, स्वरोजगार के ठौर तलाशे हैं। ऐसे में पलायन कर प्रदेश से बाहर जाने वालों की संख्या में कमी आई है। पिछले पांच वर्षों में प्रदेश के नगरों की संख्या 92 से बढ़कर 102 पहुंच चुकी है।
सूत्रों के अनुसार नजदीकी शहरों, नगरों व कस्बों में पलायन करने वाले लोग गांवों से जुड़े हुए हैं। उनकी आर्थिकी में भी सुधार दिख रहा है। शहरों में रोजगार के लिए आए लोग नियमित रूप से गांव में अपने परिवार को धनराशि भेज रहे हैं। यही नहीं, अन्य प्रदेशों से वापस गांव लौटे तमाम व्यक्तियों ने अब गांव में ही स्वरोजगार के साधन ढूंढ लिए हैं। कुछ ने तो अन्य जनों को भी गांव में ही रोजगार देने का काम भी किया है।
पलायन की स्थिति को लेकर गांवों का सर्वे पूर्ण कर लिया गया है। आंकड़ों का विश्लेषण चल रहा है। प्रयास ये है कि अगले साल जनवरी तक रिपोर्ट तैयार कर सरकार को सौंप दी जाए।
- डा एसएस नेगी, उपाध्यक्ष, पलायन निवारण आयोग, उत्तराखंड