देहरादून। प्रदेश कांग्रेस में पिछले एक साल से चल रहे बवाल के बाद आखिरकार आलाकमान को पीएल पूनिया को पर्यवेक्षक बना उत्तराखंड भेजना पड़ा। वरिष्ठ नेता पूनिया ने भी अपनी भूमिका से पूरा न्याय किया। तीन दिन तक पूनिया की पंचायत चली। विधायक और पूर्व विधायकों से लेकर पूर्व सांसदों और संगठन के साथ 16 घंटे से अधिक समय तक बैठकें की।

प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव को लेकर असंतोष को भांप पूनिया ने इन बैठकों के दौरान उन्हें अलग ही रखा, ताकि असंतुष्ट धड़ा बेझिझक अपनी बात रख सके। विधायक तिलकराज बेहड ने पार्टी में क्षेत्रीय असंतुलन का जो मुददा उठाया था, लगता है वह भविष्य में रंग दिखाने जा रहा है। लोकसभा चुनाव को एक साल बचा है, कांग्रेस अपनी प्रतिद्वंद्वी भाजपा से मुकाबले की तैयारी के बजाय आपस में वार-पलटवार में उलझी है। अब पूनिया दिल्ली दरबार में जो रिपोर्ट देंगे, उससे पता चलेगा कि इसका जिम्मेदार है कौन।

मंत्री मांगें एसीआर लिखने का अधिकार
मंत्रियों को उनके विभागीय सचिवों की वार्षिक गोपनीय प्रविष्टि, यानी एसीआर लिखने का अधिकार देने का विषय पिछले कई महीनों से सत्ता के गलियारों में गूंज रहा है। पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज खुलकर इस तरह की मांग उठा रहे हैं। कैबिनेट की पिछली बैठक में फिर यह विषय आया। मंत्रियों के मुताबिक इस बारे में मुख्य सचिव को निर्देश दे दिए गए हैं।

खैर, मंत्रियों की बात अपनी जगह ठीक, लेकिन अब विपक्ष कांग्रेस ने मुददा लपक लिया है। कांग्रेस नेता सवाल कर रहे हैं कि मंत्रियों को एसीआर लिखने का अधिकार दे दिए जाने के बाद इस बात की क्या गारंटी है कि इससे व्यवस्था सुधरेगी। दरअसल, उत्तराखंड में यह व्यवस्था लागू न होने का मुख्य कारण यह है कि एक सचिव के पास कई मंत्रियों के विभाग हैं, क्योंकि आइएएस अधिकारियों की कमी है। ऐसे में कौन मंत्री किस सचिव की एसीआर लिखेगा, यह कैसे तय हो पाएगा।

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